ढोकरा राखियों के निर्माण से तीन स्व सहायता समूह की तीस महिलाओं को मिला रोजगार
बहन भाई के पवित्र रिश्ते एवं प्रेम के बंधन का त्यौहार रक्षाबंधन के आते ही बाजार में रंग बिरंगी सैकड़ों राखियों की दुकानें सज जाती हैं। इस बार रक्षाबंधन में छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल कोण्डागांव जिले के आदिवासी हस्तशिल्प कलाकारों ने परंपरागत हस्तशिल्प ‘ढोकरा शिल्प‘ का प्रयोग राखी बनाने में किया है ।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी कलाकारों द्वारा निर्मित ढोकरा राखियों ने अपनी अलग पहचान के कारण देश के साथ-साथ विदेशी बाजारों में भी अपनी पैठ बनाने में सफलत पाई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान स्व सहायता समूह के द्वारा निर्मित इन राखियों में मौली, रुद्राक्ष, मोती आदि का भी प्रयोग किया गया है एवं इन राखियों की ब्रांडिंग ‘ढोकरा रक्षा राखी‘ के नाम से की गयी है। ढोकरा शिल्प के प्रयोग से छोटी-छोटी कलाकृतियाँ बेल मेटल से तैयार कर इन्हें राखियों में मौली,रूद्राक्ष,मोतियों के साथ पिरोया जाता है। अपने आकर्षक स्वरूप के कारण ये राखियाँ बरबस ही लोगों को आकर्षित करती हैं। अपनी इस विशेषता के कारण इन राखियों का उपयोग लॉकेट या ब्रेसलेट के रूप में भी किया जा सकता है।
इस पहल से जिले के शिल्पकार और महिला समूह को आय के नए स्रोत प्राप्त हुए हैैं। तथा नए डिजाइन एवं नई सोच के साथ काम करने का मौका मिला है । जिला प्रशासन की मदद से ग्राम पंचायत डोंगरी गुड़ा के किडीछेपरा गांव में शिल्पकारों एवं जागो महिला समूह की महिलाओं को राखियों के नए डिजाइन निर्माण का प्रशिक्षण उड़ान महिला कृषक प्रड्यूसर कंपनी के द्वारा दिया गया है। इन राखियों को तैयार करने के लिए पंखुड़ी सेवा समिति के द्वारा प्रशिक्षण एवं मार्केटिंग का कार्य किया गया है।
ढोकरा राखी ने विदेशों में भी अपनी पहुँच बनाई है। राखियों का विक्रय ऑनलाइन माध्यमों से भी किया गया । कोण्डागांव जिले में जिला पंचायत की ओर से महिलाओं के रोजगार हेतु शुरू की गई इस नवीन पहल के तहत तीन महिला स्व-सहायता समूह की 30 महिलाओं को राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। इनके प्रशिक्षण के लिये 65000 रुपये जिला पंचायत द्वारा प्रदान किया गया था। शेष व्यय उड़ान महिला कृषक प्रोड्यूसर कम्पनी द्वारा वहन किया गया है तथा निर्माण कार्य भी उड़ान में ही प्रारम्भ किया गया था। 10 दिनों में महिला समूह द्वारा हजारो राखियां तैयार कर बाजार में विक्रय हेतु उपलब्ध कराई गई। इस कार्य से महिला समूहों की प्रत्येक महिला को 2000 से 2500 तक आय प्राप्त हुई है।