रायपुर । राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ’सुहिणी सोच सामाजिक संस्था’ द्वारा आयोजित प्रथम बहुरानी सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुई। उन्होंने कहा सुहिणी सोच सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित बहुरानी सम्मेलन एक अनोखा कार्यक्रम है। अभी तक हमनें युवा सम्मेलन, बुजुर्ग सम्मेलन यहां तक महिलाओं का सम्मेलन देखा था। मगर पहली बार मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है कि एक रिश्तों पर आधारित कार्यक्रम पर शामिल हो रही है। इसके लिए उन्होंने आयोजकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि परिवार की बहुएं बड़ों को सम्मान दे और बच्चों मंे संस्कार रोपित करें। राज्यपाल ने कहा कि हम ऐसे देश में निवास करते हैं जहां की संस्कृति अनूठी है।
यहां पर परिवार का महत्व है। परिवार में हर संबंधों के पीछे एक भावना का महत्व होता है। यहां संयुक्त परिवार में बुजुर्ग, दादा-दादी, माता-पिता, बेटे-बेटियां, बहुएं सब साथ में रहते है। इसके उलट पश्चिमी देशों में एकाकी परिवार की अवधारणा पाई जाती है। भारतीय समाज में महिलाओं को विशेष स्थान दिया गया है। हमेशा से उन्हें पूजनीय माना गया है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां बेटियों को विशेष सम्मान दिया जाता रहा है, दूसरे घर से विवाह कर आने वाली लड़की जिसे हम बहू कहते है उसे बेटी का दर्जा दिया जाता है। इसके उलट पश्चिमी देशों में हर रिश्ते के पीछे एक कानूनी आधार होता है। वे बहू को डॉटर इन लॉ से संबोधित करते है। सुश्री उइके ने कहा कि इस कार्यक्रम का विशेष महत्व है, क्योंकि यहां पर सिर्फ बहुएं ही शामिल हुई हैं। जब किसी परिवार में विवाह होता है तो यह केवल एक संस्कार ही नहीं दो परिवारों का मिलन भी होता है। एक परिवार जिसने अपनी बेटी को जन्म से पाल पोस कर बड़ा किया और विवाह के समय अपनी जीवन भर की पूंजी-बेटी को दूसरे परिवार को सौंप देता है। इस प्रकार विवाह, परिवारों के बीच भावनात्मक संबंध स्थापित करता है। एक बहू जब दूसरे घर जाती है तो नया परिवेश मिलता है। उसे परिवार के हिसाब से ढलना पड़ता है। उसके जीवन में संपूर्ण परिवर्तन आ जाता है।
बहू को अपने ससुराल के बड़ो तथा छोटों दोनों के प्रति ध्यान रखना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि हम एक तरह से देखे तो बहू से ही उस परिवार की समाज में तस्वीर बनती है, उसे परिवार का दर्पण भी कहा जाता है। बहू अपने परिवार तथा बच्चों में संस्कार का बीज बोती है। बहू से ही परिवार में एकता और सामंजस्य के भाव आते हैं। राज्यपाल ने कहा कि हम बहुओं को बेटी के नजरिए से देखें और उससे वैसा ही व्यवहार करें जैसे हम अपनी बेटियों से करते हैं। हम उनके खान-पान और रहन-सहन का ध्यान रखें तो वे भी आपको बराबर सम्मान देंगी। उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक समाज की आवश्यकता अनुरूप आज अधिकतर परिवार नौकरी या दूसरे कारणों से एकांकी परिवार के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं। परिवार में अधिकतर पति-पत्नी रह जाते हैं। संयुक्त परिवार ना होने से बहू की अवधारणा खत्म होते दिख रही है। ऐसी परिस्थितियों में ऐसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ जाता है।
कार्यक्रम में बहुओं को संस्कारों और आचार-व्यवहार की सीख दी जा रही है। उन्होंने कहा कि बहू को बाद में एक सास की भूमिका भी निभानी पड़ती है। आप सभी लोग अपने घर के बुजुर्ग सास-ससुर को विशेष सम्मान दे। किसी भी स्थिति में उन्हें दुखी होकर वृद्धाआश्रम जैसे संस्थानों का मुंह ना देखना पड़े। अपने बेटों-बेटियों में संस्कार रोपण करें। पुत्रों में ऐसा संस्कार डाले कि वह हर महिला को सम्मान की नजर से देखें। अगर वह कोई गलत कार्य करता है तो उसे तुरंत रोक लगाए। जिससे महिला अपराधों पर नियंत्रण कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि बेटियों को शिक्षित करें और इतना सशक्त बनाएं कि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके। उनको आगे बढ़ने से ना रोके, उन्हें हिम्मत दे कि वे भी एक प्रशासनिक अधिकारी या राजनेता या स्वरोजगार के जरिये समाज व देश की प्रगति में भागीदार बन सकती है। इस अवसर पर संत सांई युधिष्ठिर लाल, सांई लाल दास, सीए चेतन तारवानी, सुहिणी सोच संस्था के अध्यक्ष पायल जेसवानी, फाउंडर मनीषा शर्मा ने पूर्व अध्यक्ष काजल लालवानी, सचिव माही गुलामी सहित बड़ी संख्या में सिंधी समाज की महिलाएं उपस्थित थीं।