रायपुर । छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस पर डीडीयू आडिटोरियम में दो दिवसीय आयोजित जवाहर लाल राष्ट्रीय शिक्षा समागम में आज राजस्थान, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के शिक्षा विशेषज्ञों ने स्कूलों में समावेशी शिक्षा पर आयोजित विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस दौरान शिक्षाविदों ने शिक्षा में असमानता दूर करने के लिए विशेष आवश्यकता वाले दिव्यांग सहित अन्य विद्यार्थियों को शिक्षा के समान अवसर दिए जाने और नवाचार को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने अपने-अपने राज्य में इस दिशा में किए गए उल्लेखनीय कार्यों को बताया। समावेशी शिक्षा पर व्याख्यान में सत्र के चेयरपर्सन श्री बिराज पटनायक कार्यकारी निदेशक एनएफआई ने कहा कि केवल साक्षर होना जरूरी नहीं है। सोचने और समझने की शक्ति का होना भी जरूरी है।
ऐसे बच्चें जो स्कूल तक नहीं पहुंच पाते हमें उन बच्चों तक पहुंचकर उनकी समस्या को जानकर इस दिशा में कार्य करना होगा, तभी हम समावेशी शिक्षा को सार्थक कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि बच्चों को पहले कक्षा तक कैसे लाए, क्लासरूम आने पर कैसे उन्हें शिक्षा से जोड़ सके, इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। श्री पटनायक ने कहा कि समावेशी का फैलाव सर्वव्यापी होना चाहिए। डिजीटल से पहले फिजिकल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक समाज में भेदभव होगा तो स्वाभाविक है कि स्कूलों में भी यह भेदभाव बना रहेगा। इसलिए समाज से भेदभाव मिटाना बहुत जरूरी है। मुझे इस बात कि बेहद खुशी है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने समावेशी शिक्षा को लेकर इस आयोजन के माध्यम से सबको एक साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान किया। छत्तीसगढ़ सरकार को इसके लिए मैं धन्यवाद देता हूं।
व्याख्यान में छत्तीसगढ़ के शिक्षाविद श्री पी. रमेश ने राज्य में समावेशी शिक्षा की दिशा में किए गए अभिनव प्रयासों की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अनुसचित जनजाति, अनुसूचित जाति सहित कमजोर वर्गों के विद्यार्थियों के लिए कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ित परिवारों सहित अन्य लोगों के लिए स्कूल का संचालन किया जा रहा है। श्री पी. रमेश ने बताया कि सभी स्कूलों मंे दिव्यांग बच्चों के लिए रैम्प की स्थापना, निःशक्त बच्चों के लिए विशेष टायलेट की स्थापना, एण्ड्रायड मोबाइल से अध्ययन की व्यवस्था की गई है। समग्र शिक्षा के साथ बच्चों के विकृत अंगों को सर्जरी से ठीक करने से लेकर थर्ड जेण्डरों को उचित सम्मान देने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है। झारखंड से आए विद्वान शिक्षाविद डॉ. डी.एन. सिंह ने अपने व्याख्यान में झारखंड स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित शिक्षा विभाग की गतिविधियों से अवगत करवाया। उन्होंने अपने व्याख्यान में आज की चुनौतियों को लेकर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि उनके यहां झारखंड में बच्चे आजीविका की तलाश में स्कूल छोड़ काम करने दिल्ली या कहीं आस-पास के राज्यों में चले जाते हैं और इस तरह उनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती। राज्य सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए उन बच्चों के लिए जिनकी पढ़ाई ऐसे बीच में ही छूट जाती है, उसे पूरा करने के लिए ज्ञानसेतु नामक एक माध्यम बनाया। जिससे वे अपनी अधूरी शिक्षा को पूरी कर सके।
इस तरह हमने उन सब बच्चों को शिक्षा में पुनः जोड़ने का काम किया। राजस्थान से आए प्राध्यापक श्री संजय सेंगर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि राजस्थान बड़ा राज्य है और वहां विभिन्न भाषाएं है। इसलिए हमारी चुनौतियां और बड़ी है। इन चुनौती को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार ने पांच केंद्रों के माध्यम से भाषा को लेकर काम करने का निर्णय लिया। कोविडकाल में जिस तरह आज छत्तीसगढ़ में पढ़ई तुंहर दुआर संचालित है, उसी तरह राजस्थान में आओ घर में सीखे कार्यक्रम संचालित है। राजस्थान स्कूल शिक्षा विभाग आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से भी अपने बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही है। साथ ही जीवन कौशल के माध्यम से कौशल विकास पर केंद्रित कार्य किया जा रहा है। चर्चा सत्र में पैनल एक्सपर्ट डॉ. अनिथा नूना एनसीईआरटी नई दिल्ली में डीसीएस की विभागाध्यक्ष ने कहा कि समावेशी शिक्षा सिर्फ मॉडल तक सीमित न रह जाए, यह स्कूलों और क्लासरूम तक पहुचकर बच्चों तक पहुचे, यह जरूरी है। उन्होंने शिक्षा समागम की सराहना करते हुए कहा कि मैं छत्तीसगढ़ की सरकार को ऐसे आयोजन के लिए बधाई देती हूं।