रायपुर । छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज ग्राउंड में आयोजित हो रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में आदिवासी संस्कृति के साथ और कई अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। इसी कड़ी में महोत्सव के दौरान राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में हो रहे प्रयासों को लोगों के बीच रखने परिचर्चा का आयोजन हुआ। इस परिचर्चा के एक महत्वपूर्ण सत्र में “कोविड के बाद विश्व में उत्तरदायी पर्यटन” विषय पर चर्चा की गई। इस परिचर्चा में छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के प्रबंध संचालक श्री यशवंत कुमार के साथ रेस्पॉन्सिबल टूरिज़्म सोसायटी की कार्यकारी निदेशक डॉ. अनुजा धीर, ईको टूरिज्म के क्षेत्र में काम कर रहे भोरमदेव रिट्रीट के संस्थापक सन्नी व दीप्ति, अनएक्सप्लॉर्ड बस्तर के संस्थापक जीत सिंह आर्य पैनल में शामिल थे। संचालन महोत्सव क्यूरेटर यास्मीन किदवई ने किया।
इस दौरान उत्तरदायी पर्यटन के क्षेत्र में शासन के प्रयासों का उल्लेख करते हुए छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के प्रबंध संचालक श्री यशवंत कुमार ने कहा कि स्थानीय त्योहारों में अवकाश देने और उन्हें मनाने की नयी परम्परा राज्य शासन की ओर से शुरू की गई है, जिससे लोगों में परम्पराओं को लेकर नए उत्साह का संचार हुआ है साथ ही लोग अपनी संस्कृति व परम्परा पर गर्व की अनुभूति भी कर रहे हैं। राज्य सरकार ने अपनी योजनाओं में कई हितकारी उद्देश्य को समाहित किया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय प्रभाव से सूखते जल स्त्रोतों को ध्यान में रखते हुए पर्यटन स्थलों समेत पूरे छत्तीसगढ़ में नरवा-गरवा-घुरुवा-बारी योजना की शुरुआत राज्य में की गई है, जो नदियों-तालाबों से लेकर अन्य जल स्त्रोतों में पानी की उपलब्धता को बनाए रखने में सहायक हो रहा है। वहीं कहा कि यह प्रयासों का ही परिणाम है कि जहां पूरे देश में जंगल कम हो रहे हैं तो छत्तीसगढ़ व अरुणाचल प्रदेश दो ही राज्य ऐसे हैं, जहां वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है।
यह पर्यावरण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी की भावना को दिखाता है। श्री यशवंत कुमार ने कहा कि पुरानी परंपरा व सभ्यता होने के बाद भी आदिवासी संस्कृति कई पाश्चात्य देशों से भी आधुनिक सोच रखती है। पर्यटन के क्षेत्र में सरकार के साथ पर्यटकों के उत्तरदायित्व पर उन्होंने बल दिया। साथ ही कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार हर तरीके से उत्तरदायी पर्यटन की दिशा में प्रयास कर रही है। परिचर्चा में रेस्पॉन्सिबल टूरिज़्म सोसायटी की कार्यकारी निदेशक डॉ. अनुजा धीर ने “अतिथि देवो भवः” की अवधारणा में आंशिक परिवर्तन की जरूरत बतायी। उन्होंने कहा कि, पर्यटकों को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जिम्मेदार बनना पड़ेगा। वहीं किसी पर्यटन स्थल के कुछ खास क्षेत्रों के बजाय कुछ नया जानने-सीखने के ललक को बढ़ाने की जरूरत है। वहीं भोरमदेव रिट्रीट के श्री सन्नी ने बताया कि वे ईको टूरिज्म के लिए प्रयास कर रहे हैं। साथ ही कहा कि पर्यटन को बढ़ाने में मौखिक प्रचार अन्य प्रसार माध्यम से अधिक कारगर है। श्री जीत सिंह आर्य ने स्थानीय लोगों को पर्यटन व्यवसाय में जोड़कर रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत पर बात की।