सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में गौठानों का निर्माण और पशुधन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गोधन न्याय योजना से राज्य के ग्रामीण अंचल में रोजगार एवं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला है। गोधन न्याय योजना के माध्यम से सालभर पहले जब 2 रुपया किलो में गोबर खरीदी की शुरुआत छत्तीसगढ़ में हुई थी, तब किसी ने सोचा नहीं था कि इस योजना से गांवों में कितना बड़ा बदलाव आने वाला है।
एक साल में गोधन न्याय योजना ने महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने के और करीब पहुंचा दिया है। गौठान और गोधन न्याय योजना के माध्यम से गांवों में स्वावलंबन और नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने का सपना तेजी से साकार हो रहा है।
गोधन न्याय योजना से किसानों, पशुपालकों, महिलाओं, भूमिहीनों को नयी ताकत मिली है। उन्हें आमदनी और रोजगार का नया जरिया मिला है। साल भर में गौठानों में गोबर बेचने वाले पशुपालकों, किसानों एवं ग्रामीणों के बैंक खातों में 98 करोड़ 8 लाख रुपए का सीधा भुगतान किया जा चुका है। स्व सहायता समूहों और गौठान समितियों के बैंक खातों में अब तक कुल 43 करोड़ 38 लाख रुपए के लाभांश एवं भुगतान की राशि का अंतरण हुआ है।
राज्य में कुल 10 हजार 101 गौठान स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 5 हजार 916 गौठानों का निर्माण पूरा करके वहां पशुधन की देखरेख, चारे पानी की व्यवस्था, गोबर की खरीदी एवं अन्य आयमूलक गतिविधियां संचालित की जा रही है। शेष गौठानों का भी निर्माण तेजी से किया जा रहा है। राज्य में अब तक कुल गौठानों में महिला स्व-सहायता समूह 6 लाख 69 हजार 489 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जा चुका था, इनमें से 76 प्रतिशत, यानी 5 लाख 12 हजार 309 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट की बिक्री की जा चुकी थी। इसी तरह 2 लाख 77 हजार 777 क्विंटल सुपर कंपोस्ट का उत्पादन किया जा चुका था, इसमें से 39 प्रतिशत यानी 01 लाख 07 हजार 851 क्विंटल सुपर कंपोस्ट की बिक्री की जा चुकी थी।
वर्मी कंपोस्ट निर्माण के काम में 4 हजार 808 स्व सहायता समूहों की 36 हजार 315 सदस्यों को आय हो रही है। अब तक महिला स्व-सहायता समूहों को 17 करोड़ 74 लाख रुपए की आय हो चुकी है। सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में निर्मित गौठान धीरे-धीरे स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं। अब तक 1160 गौठान स्वालंबी हो चुके हैं। गोठान अब गावों में एक नये शक्ति केंद्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। इन गोठानों से किसानों को नयी ताकत मिल रही है।
खेती और पशुपालन मजबूत हो रहा है। गौठानों में वर्मी कंपोस्ट निर्माण के साथ-साथ सामुदायिक बाड़ी, मशरूम उत्पादन, मछली पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, पशुपालन, गोबर से दीया-गमला-अगरबत्ती निर्माण तथा अन्य गतिविधियां से भी स्व सहायता समूहों को आय हो रही है। महिला स्व -सहायता समूहों को अब तक 35 करोड़ 27 लाख रुपए की आय हो चुकी है।