स्वतंत्रता दिवस की 75वीं जयंती के अवसर पर नारायणी साहित्यिक संस्थान ने रायपुर में सुन्दर नगर स्थित केयूर भूषण उद्यान के ‘नारायणी – चरामेति वाचनालय’ (गांधी कुटीर ) में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
कार्यक्रम का संयोजन संस्थान की अध्यक्ष डॉ मृणालिका ओझा ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री तेजपाल सोनी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे श्री सुरेन्द्र रावल, अध्यक्षता की आचार्य अमरनाथ त्यागी जी, कार्यक्रम का संचालन राजेन्द्र ओझा एवं रोशन बहादुर जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उपस्थित कवियों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम की उच्च गरिमा प्रदान की।
अनिल श्रीवास्तव ‘जाहिद’
( वीर सेनानियों को याद करते हुए)
वतन पर जान देने को सदा तत्पर जो रहते हैं,
नमन अहले वतन दिल की सदा से उनको कहतें हैं,
शहादत को कभी ना भूलेंगे यारों जवानों की,
लूटाकर हर खुशी अपनी जो दर्दो ग़म को सहते हैं।
डॉ मृणालिका ओझा
(पावस ऋतु पर)
श्याम सुंदरी गगन से उतरी,
काली घटा की घूंघट ओढे।
धानी चुनरिया लहराती सी,
माथे पे बिंदिया चमचम चमके।
चमचम बिंदिया चमकाये—
चेतन भारती
( बलिदान का स्मरण)
आज तुम्हारे बलिदानों की बंद हो चुकी है चर्चा,
तेरा भारत ढोता है महंगे चुनाव का खर्चा।
आचार्य अमरनाथ त्यागी
(शहीदों को नमन)
शहीदों की चिताओं में जहां शोले दहकते हैं,
उठे हर धूल के कण में, वहां चन्दन महकते हैं।
सुरेन्द्र रावल
(ध्वजा शांति की)
कर्तव्य मशालों में जलती निष्ठा लौ,
स्वातंत्र्य सूर्य की चमक न बुझने पाए।
हिंसा दानव मर जाए शीश पटककर,
पर ध्वजा शांति की कभी न झुकने पाए।
राजेश जैन ‘राही’
( मां भारती का गीत )
भारती की वंदना के गीत मैं लिखूंगा सदा,
लेखनी से समझौता कर नहीं सकता।
गढ नहीं सकता मैं भेदभाव की दीवार,
मरने से पहले मैं मर नहीं सकता।
राजेन्द्र ओझा
( दरिया पर जीत)
पैर के तलुए
पहली बार छूते हैं जब
दरिया का खारा पानी
वह तैयार करते हैं खुद को
उतरने के लिए दरिया में
दरिया में बहुत भीतर तक जाने के लिए
छोटी लहर पर फिसलने से
सुनामी तक से लडने के लिए।
कान्हा कौशिक
( पोरा तीहार)
नांदिया बइला दूर के,
चीला बनाये गुर के।
आप खालेव कोटना में,
हमला दे देव तोपना मे।
सुनील पांडे
(कामयाबी का गीत )
मेहनत मेहंदी की तरह रंग लाती है
कामयाबी कदम चूमने खुद आती है
मुकद्दर वो शय सबको आजमाती है
मगर सिकंदर के आगे सर झूकाती है।
इन्द्र देव यदु
(जवानों को सलाम)
मेरे देश के वीर जवान
तुमको है मेरा सलाम
देश की तुम रक्षा करते
विपत्ति में भी आए काम।
कुमार जगदलवी
( देश की बात )
ये गगन वही, वतन भी वही है,
ये दिल्ली वही, बिहार भी वही है,
वतन की अगर वो शान नहीं है,
मां भारती की वो संतान नहीं है।
अंबर शुक्ला ‘अंबरीश’
(आज़ादी के दीवाने)
आजादी के दीवानों को याद करें
देशप्रेमी जन के बलिदानों को याद करे
प्रण करे तिरंगा का मान रखेंगे
इस अवसर पर यह संकल्प रखेंगे।
तेजपाल सोनी
(वीरों का बलिदान)
जिन वीरों के बलिदानों से
आज़ादी के दिन-रात मिले
है नजरों की नजर में आता
चेहरों में दिखते खिले खिले।
रामेश्वर शर्मा
तात्याटोपे लक्ष्मी बाई खेल अनोखा खेल गए,
देश की खातिर देखो प्यारे प्राण का झूला झूल गए।
डॉ अर्चना पाठक
झिमिर- झिमिर सावन बरसन लागे न,
आज धरती के अंचरा हरियर होगे न।
शीलकांत पाठक
जमाने की काली कोठरी में रहते भी
साफ मन और गंगा सी
चंगी जिंदगी को
कठौते सी देह में
संभाले है मेरी मॉं।
इसके अतिरिक्त श्रीमती प्रमिला शुक्ला, वीर अजीत शर्मा, अशोक भट्टड, राजेन्द्र चांडक, प्रशांत महतो, प्रेम प्रकाश साहू आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।