सुकमा । आदिवासी बाहुल्य सुकमा जिला अपने कला संस्कृति और लोक परम्परा के लिए प्रदेश सहित देश भर में जाना जाता है। यहाँ के लोक गीत, संगीत और नृत्य अपने आप में अनूठे और मनमोहक हैं। सुकमा में अधिकतर जनसंख्या आदिवासी समाज की ही है, यही वजह है कि बड़े शहरों से भी लोग यहाँ की प्राकृतिक सौन्दर्य और सरल जीवनशैली का आनंद लेते आते रहते हैं।
यहाँ के पारम्परिक कलाओं में प्रकृति की कृपा और उसके प्रति आस्था का प्रमाण मिलता है। तीज त्योहारों में आदिवासी समाज के लोग इन्हीं गीत संगीत को गाकर ढोल मांदर की थाप पर अपनी खुशियाँ मनाते हैं।
आज विश्व आदिवासी दिवस को भी जिले के आदिवासी समाज के लोगांे ने बड़े ही हर्ष के साथ मनाया।
सर्व आदिवासी समाज भवन सुकमा में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में जिले के अलग अलग जनजाति के कलाकारों ने मनोरम प्रस्तुतियाँ दी। ग्राम निलावरम की महीलाओं ने अपने गीत के माध्यम से आदिवासी महिलाओं के जीवन में आ रहे बदलाव के बारे में बताते हुए कहा कि कल तक जो महिलाएं जंगल, पहाड़ घूम घूम कर महुआ, टोरा, इमली बटोरती थी, आज आगे बढ़ रही हैं।
वहीं उदलातरई के नर्तक दल ने मांदर की थाप पर पारम्परिक नृत्य की प्रस्तुति दी। वहीं सुकमा के उरांव व सान्थाल जनजाति के नर्तक दल द्वारा प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हुए, प्रकृति के विभिन्न स्वरुप का हर्ष के साथ सहेजने की प्रस्तुति रही। ढोल और मांदर की थाप पर अपनी प्रसतुतियों से कलाकारों ने खूब तालियाँ बटोरी।
आदिवासी विकास विभाग सुकमा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आदिवासी समाज के प्रतिभावान छात्रों और प्रतियोगी परिक्षाओं में परचम लहराने वाले छात्रों तथा सुकमा में सामाजिक विकास में अपना योगदान देने वाले व्यक्त्यिों का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम में सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग सुकमा श्री बद्रीश सुखदेवे, सुकमा जनपद पंचायत सीईओ श्री कैलाश कश्यप, एपीओ जिला पंचायत श्री बलवन्त मार्को सहित विभिन्न आदिवासी समाज के पदाधिकारीगण एवं आदिवासी विभाग के अधिकारी, कर्मचारी गण व मंडल संयोजक उपस्थित रहे।