भारतीय क्रिकेट के लिए बुधवार का दिन दुखद रहा, जब पूर्व क्रिकेटर और कोच अंशुमन गायकवाड़ ने 71 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हो गया, जिससे क्रिकेट जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
गायकवाड़ ने अपने करियर में भारत के लिए 40 टेस्ट और 15 एकदिवसीय मैच खेले। उनका क्रिकेट सफर केवल खिलाड़ी के रूप में ही नहीं, बल्कि कोच के रूप में भी उल्लेखनीय रहा। वे उस भारतीय टीम के कोच थे, जिसने 2000 में ICC चैंपियंस ट्रॉफी में उपविजेता का स्थान हासिल किया था।
उनके निधन से पहले, गायकवाड़ लंदन के किंग्स कॉलेज अस्पताल में रक्त कैंसर का इलाज करवा रहे थे। पिछले महीने वे भारत लौट आए थे। उनके इलाज में BCCI ने एक करोड़ रुपये की मदद की थी। इतना ही नहीं, 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्यों ने भी अपने साथी की मदद के लिए हाथ बढ़ाया था।
गायकवाड़ का क्रिकेट करियर बेहद शानदार रहा। उन्होंने 22 साल के अपने करियर में 205 प्रथम श्रेणी मैच खेले। बल्लेबाज के रूप में उनकी तकनीक और धैर्य की सराहना की जाती थी। टीम इंडिया के कोच के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कई यादगार पल आए। 1998 में शारजाह में भारत की शानदार जीत और 1999 में फिरोजशाह कोटला में पाकिस्तान के खिलाफ अनिल कुंबले के ऐतिहासिक 10 विकेट, ये सब उनकी कोचिंग में हुआ।
गायकवाड़ की विशेषता थी कि वे खिलाड़ियों को समझते थे और उनकी क्षमताओं का सही इस्तेमाल करना जानते थे। उनके मार्गदर्शन में कई युवा खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा निखारी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
उनके निधन पर क्रिकेट जगत के कई दिग्गजों ने श्रद्धांजलि दी है। सचिन तेंदुलकर ने उन्हें एक बेहतरीन इंसान और क्रिकेट का ज्ञाता बताया, तो वहीं सौरव गांगुली ने उनके योगदान को याद किया।
अंशुमन गायकवाड़ के रूप में भारतीय क्रिकेट ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है, जिसने खिलाड़ी और कोच दोनों रूपों में अपनी छाप छोड़ी। उनका जाना न केवल क्रिकेट जगत के लिए, बल्कि उन सभी के लिए एक बड़ी क्षति है जो उनके संपर्क में आए और उनसे सीखे। भारतीय क्रिकेट उनके योगदान को हमेशा याद रखेगा।