क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा दशहरा भी मनाया जाता है जो 75 दिनों तक चलता है? हाँ, यह है बस्तर का दशहरा – एक ऐसा उत्सव जो न केवल अपनी अवधि के लिए, बल्कि अपनी अनूठी परंपराओं के लिए भी जाना जाता है।
इस साल, जगदलपुर में हरेली अमावस्या के शुभ अवसर पर इस महोत्सव की शुरुआत हुई। माँ दन्तेश्वरी मंदिर के सामने पाट जात्रा पूजा के साथ इस विश्व प्रसिद्ध उत्सव का आगाज हुआ। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि बस्तर की संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन है।
उत्सव की शुरुआत में, बस्तर के सांसद महेश कश्यप, जो कि बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष भी हैं, महापौर सफीरा साहू, और कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस उत्सव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका किसकी होती है? वे हैं मांझी-चालकी, मेम्बर मेम्बरीन, और पुजारी-गायता – जो इस उत्सव की पारंपरिक आत्मा हैं।
पाट जात्रा में एक दिलचस्प रस्म होती है – रथ निर्माण के औजारों की पूजा। ठुरलू खोटला और अन्य औजारों की पारंपरिक विधि से पूजा की जाती है। यह रस्म न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि स्थानीय कारीगरी और कौशल को भी सम्मानित करती है।
लेकिन यह तो बस शुरुआत है! आने वाले दिनों में कई रोचक रस्में होंगी:
- 16 सितंबर को डेरी गड़ाई रस्म
- 2 अक्टूबर को काछनगादी पूजा
- 3 अक्टूबर को कलश स्थापना
- 4 अक्टूबर को जोगी बिठाई रस्म
और यह सिलसिला चलता रहेगा। बेल पूजा, निशा जात्रा, महालक्ष्मी पूजा, कुंवारी पूजा – हर दिन कुछ नया, कुछ अनोखा!
क्या आप जानते हैं कि इस उत्सव का समापन कैसे होता है? 19 अक्टूबर को माँ दन्तेश्वरी की विदाई के साथ। यह क्षण भावुक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी होता है।
बस्तर का दशहरा सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है। यह बस्तर की समृद्ध संस्कृति, लोक परंपराओं, और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम है। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं।
तो, क्या आप इस साल बस्तर के दशहरे में शामिल होने की योजना बना रहे हैं? यह एक ऐसा अनुभव होगा जो आपको जीवन भर याद रहेगा!