छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कावड़ियों पर की अभूतपूर्व पुष्प वर्षा
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कावड़ियों पर की अभूतपूर्व पुष्प वर्षा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए भोरमदेव मंदिर में शिव भक्तों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की। यह घटना 5 अगस्त 2024 को कबीरधाम जिले में घटित हुई, जो राज्य के धार्मिक पर्यटन के लिए एक नया अध्याय लिखने वाली साबित हुई।

सावन के पावन महीने में, हजारों की संख्या में शिव भक्त, जिन्हें कावड़िया के नाम से जाना जाता है, सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके भगवान शिव का जलाभिषेक करने आए थे। इस वर्ष उनका स्वागत अत्यंत विशेष था, क्योंकि स्वयं राज्य के मुखिया ने आकाश से पुष्प बरसाकर उनका अभिनंदन किया।

श्री विष्णु देव साय के साथ उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा भी इस अवसर पर उपस्थित थे। यह पहली बार था जब छत्तीसगढ़ में किसी मुख्यमंत्री ने इस प्रकार की पहल की, जो न केवल धार्मिक भावनाओं को बल देती है, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक विरासत को भी उजागर करती है।

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भोरमदेव मंदिर, जो कवर्धा से मात्र 18 किलोमीटर दूर ग्राम चौरा में स्थित है, 11वीं शताब्दी का एक प्राचीन स्मारक है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। प्रतिवर्ष श्रावण मास में, यहाँ हजारों भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं।

इस वर्ष की यात्रा विशेष रूप से उल्लेखनीय थी, क्योंकि भक्तों ने अमरकंटक से लेकर भोरमदेव तक की 150 किलोमीटर की दूरी तय की। यात्रा के दौरान, भक्तों ने “बोल बम” और “हर हर महादेव” के नारों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

मुख्यमंत्री की इस पहल ने न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया है, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को भी उजागर किया है। इस कदम से राज्य में धार्मिक सद्भाव और एकता की भावना को भी बल मिला है।

यह आयोजन कबीरधाम, मुंगेली, बेमेतरा, खैरागढ़, और राजनांदगांव जैसे आसपास के जिलों के लिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इन क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भोरमदेव पहुंचे थे। इसके अलावा, बूढ़ा महादेव मंदिर और डोंगरिया के प्राचीन जालेश्वर शिवलिंग जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर भी भक्तों की भारी भीड़ देखी गई।

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इस अनूठे आयोजन ने न केवल धार्मिक भावनाओं को बल दिया, बल्कि छत्तीसगढ़ के पर्यटन उद्योग को भी एक नई दिशा प्रदान की है। आने वाले वर्षों में, यह परंपरा और भी विस्तृत होने की संभावना है, जो राज्य के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

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