छत्तीसगढ़ के हरित प्रांत में एक अनोखी पहल ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। हरेली अमावस्या की काली रात में, जब अधिकांश लोग घरों में दुबके रहते हैं, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने एक साहसिक कदम उठाया। समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र के नेतृत्व में एक टीम ने रात्रि 11 बजे से लेकर तड़के 3 बजे तक कई गांवों का दौरा किया।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य था ग्रामीणों के मन से जादू-टोने, भूत-प्रेत, और टोनही जैसे अंधविश्वासों का भय दूर करना। टीम ने पठारीडीह, कन्हेरा, कंडारका, पिरदा, भालेसर, हरदी, और उरला जैसे गांवों में पदार्पण किया। वे न केवल गांव की गलियों में घूमे, बल्कि नदी तट, तालाब, और श्मशान घाट जैसे स्थानों पर भी गए, जहां अक्सर अंधविश्वास का बोलबाला रहता है।
डॉ. शैलेश जाधव, ज्ञानचंद विश्वकर्मा, डॉ प्रवीण देवांगन, और प्रियांशु पांडे जैसे समिति के अन्य सदस्यों ने भी इस मुहिम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने ग्रामीणों से गहन चर्चा की और उनके विचारों को समझने का प्रयास किया।
यह पाया गया कि कई ग्रामीणों का मानना था कि हरेली की रात में टोनही जलती हुई दिखाई देती है। हालांकि, जब इस बारे में गहराई से पूछा गया, तो कोई भी ऐसी घटना का प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला। यह स्पष्ट हो गया कि ये केवल अफवाहें और सुनी-सुनाई बातें थीं।
डॉ. मिश्र ने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों के पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं, न कि कोई जादू-टोना। उन्होंने ग्रामीणों को समझाया कि बरसात के मौसम में उमस और नमी के कारण मौसमी बीमारियां फैलती हैं। इनसे बचने के लिए स्वच्छता और साफ पानी का उपयोग महत्वपूर्ण है।
इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि ग्रामीणों ने किसी भी महिला को टोनही के नाम पर प्रताड़ित न करने का वादा किया। यह एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि पिछले कुछ समय में दुर्ग, रायगढ़, बस्तर, और सरगुजा जैसे क्षेत्रों से महिलाओं के खिलाफ ऐसी घटनाएं सामने आई थीं।
अंत में, डॉ. मिश्र ने सभी से अपील की कि वे तर्कसंगत सोच अपनाएं और अंधविश्वास से दूर रहें। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है एक ऐसा समाज बनाना जहां डर और अज्ञान की जगह ज्ञान और विवेक हो।” इस अभियान ने न केवल अंधविश्वास के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी उठाया।