रायपुर के विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर में जारी आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 में दीपावली पर्व पर प्रवचनमाला शुरू हो गई है। शुक्रवार को मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने अपने प्रवचन में जैन शास्त्रों में वर्णित कालचक्र के बारे में बताया और आने वाले समय में होने वाले परिवर्तन पर प्रकाश डाला।
क्या कहते हैं जैन शास्त्र?
मुनिश्री ने बताया कि जैन शास्त्रों में कालचक्र की व्यवस्था बताई गई है, जिसमें 12 विभाग यानी आरे होते हैं। इन 12 विभागों में से पांचवे और छठवें आरे के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि पांचवे आरे में धर्म की हानि होगी और लोगों की तकलीफ बढ़ेगी। इस समय पापी लोगों का बोलबाला होगा और पारिवारिक संबंधों में दरारें आ जाएंगी।
मुनिश्री ने आगे बताया कि बाप और बेटे, भाई और भाई के बीच में लड़ाइयां होंगी, एक दूसरे के सामने अदालत में जाएंगे। घर की बहु और बेटियां मर्यादाहीन हो जाएंगी। उनके वस्त्र और पहनावा आर्य समाज की शोभा को कलंकित करेंगे। इस समय दुष्काल का प्रभाव ज्यादा होगा, बरसात कम होगी, व्यापारी अनीति करेंगे, बच्चे माता-पिता का तिरस्कार करेंगे, पिता की हाजिरी में ही पुत्र की मृत्यु होगी, लोगों को धर्म श्रवण में रुचि नहीं होगी। साधु और सन्यासी भी घर बारी जैसे होंगे और वह भी संपत्ति आदि के मालिक बनेंगे।
छठवें आरे में क्या होगा?
मुनिश्री के अनुसार, छठवें आरे में मनुष्य का आयुष्य, शक्ति, कद, रूप सभी में हानि होगी। मात्र मछलियों का भोजन होगा। पाचन शक्ति अत्यंत कमजोर होने से वह भी पचेगी नहीं। उत्कृष्ट आयुष्य 16 वर्ष का होगा। 6 वर्ष की उम्र में लड़की मां बनेगी और बहुत से बच्चों को एक साथ जन्म देगी। इस समय का मनुष्य अत्यंत दुखी होगा, कामुक होगा, क्रोधी होगा, झगड़ालू होगा, अत्यंत गर्मी और ठंडी के कारण दिन में और रात में निकलना उसके लिए मुश्किल होगा। गंगा और सिंधु नदी के किनारों पर बने बिलों में मनुष्य रहेगा और संध्या के समय निकल करके अपने आहार की खोज के लिए जाएगा। इस काल में जन्मे मनुष्य प्राय: नर्क और दुर्गति में जाएंगे और इस तरह से उनके जन्म मरण की परंपरा चलेगी।
परमात्मा महावीर स्वामी का संदेश
मुनिश्री ने बताया कि परमात्मा महावीर स्वामी ने अपनी अंतिम देशना में कहा था कि यदि सुखी होना हो, सद्गति का भाजन बनना हो तो जीवन में धर्म को अपनाओ और अपनी आत्मा को कल्याण के मार्ग पर लगाओ।