बस्तर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का महापर्व आज रात काछन देवी की अनुमति मिलने के बाद शुरू हो गया! 75 दिनों तक चलने वाला यह अनोखा पर्व अपनी अद्भुत परंपराओं के लिए जाना जाता है.
क्या है काछनगादी रस्म?
- कांटो के झूले पर लेटी कन्या: काछनगादी रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या को बेल के कांटों के झूले पर लिटाया जाता है.
- देवी की अनुमति: बस्तर में 700 वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, कांटों के झूले पर लेटी कन्या में साक्षात देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है.
किसने निभाई रस्म?
- पीहू दास: इस साल 8 वर्षीय पीहू दास ने काछन देवी के रूप में कांटो के झूले पर लेटकर बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दी.
- पिछले कुछ वर्षों से अनुराधा निभा रही थीं: पिछले कुछ वर्षों से पीहू की चचेरी बहन अनुराधा यह रस्म निभा रही थीं.
क्या है मान्यता?
- निर्बाध पर्व: मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिए काछन देवी की अनुमति जरूरी है.
- देवी का वास: पनका जाति की कुंवारी कन्या में देवी का वास मानकर उसे बेल के कांटो से बने झूले पर लिटाया जाता है.
क्या होता है इस दौरान?
- राजपरिवार की उपस्थिति: बस्तर का राजपरिवार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में लोग इस अनूठी परंपरा को देखने काछन गुड़ी पहुंचते हैं.
बस्तर दशहरा अपनी अनोखी परंपराओं और रस्मों के लिए प्रसिद्ध है. यह पर्व बस्तर की संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करता है. यह पर्व सभी के लिए खुशी और आनंद का अवसर है.