छत्तीसगढ़ के शैक्षणिक परिदृश्य में एक नया अध्याय शुरू हुआ है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर ज़ोर देते हुए शिक्षा के नाम पर होने वाली प्रताड़ना को पूरी तरह से अस्वीकार्य घोषित किया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि बच्चों पर शारीरिक दंड का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
इस मामले की शुरुआत अंबिकापुर के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल से हुई, जहाँ एक शिक्षिका पर एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। यह घटना राज्य भर में चर्चा का विषय बन गई और अंततः न्यायालय के समक्ष पहुँची। न्यायालय ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए न केवल इस विशेष मामले पर बल्कि समग्र शिक्षा व्यवस्था पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “बच्चे हमारे समाज का भविष्य हैं। उनकी शारीरिक और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल शिक्षकों और स्कूलों का, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। शारीरिक दंड न केवल बच्चे के शरीर को चोट पहुँचाता है, बल्कि उसके मन और आत्मसम्मान को भी गहरा आघात पहुँचाता है।”
न्यायाधीशों ने आगे कहा, “छोटा होना किसी को कम महत्वपूर्ण नहीं बनाता। बच्चों के पास भी वही संवैधानिक अधिकार हैं जो किसी वयस्क के पास होते हैं। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करना है।”
इस निर्णय के बाद, छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कदम उठाए। इसमें शिक्षकों का प्रशिक्षण, स्कूलों में मनोवैज्ञानिक परामर्श की व्यवस्था, और नियमित निरीक्षण शामिल हैं।
यह फैसला न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान और करुणा का संगम है, जहाँ हर बच्चा सुरक्षित महसूस करे और अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सके।
अंत में, न्यायालय ने सभी शिक्षकों और अभिभावकों से आह्वान किया है कि वे बच्चों के साथ धैर्य और समझ के साथ व्यवहार करें। “एक बच्चे का मन एक कोमल पौधे की तरह होता है। उसे प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है, न कि कठोरता की।” यह निर्णय निश्चित रूप से भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है, जहाँ हर बच्चे की गरिमा और अधिकारों का सम्मान सर्वोपरि होगा।