छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को दिव्यांग अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए एक स्पष्ट नीति बनाने का निर्देश दिया है. जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया है.
यह फैसला दिव्यांग अधिकारियों के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत है. अब दिव्यांग अधिकारियों का ट्रांसफर और पोस्टिंग उनकी शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा. यह सुनिश्चित करेगा कि उन्हें अपनी नौकरी करने में कोई दिक्कत न हो और उन्हें आसानी से मदद मिल सके.
इसके अलावा, कोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत राज्य आयुक्त की नियुक्ति का भी आदेश दिया है. यह आयुक्त दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के हनन के मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्रवाई करेगा. धारा 80 के तहत, आयुक्त को अलग-अलग सक्षम व्यक्तियों के अधिकारों के हनन के संबंध में स्वप्रेरणा से विचार करना होगा.
कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को दिए जाने वाले इस लाभ का उद्देश्य, अन्य बातों के साथ-साथ शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को ऐसे स्थान पर तैनात करने में सक्षम बनाना है, जहां उनको आसानी से मदद मिल सके और शासकीय कामकाज के संचालन में दिक्कतें ना आए. यह फैसला दिव्यांग अधिकारियों के लिए एक बड़ी राहत है और उन्हें एक समावेशी कार्य वातावरण प्रदान करने में मदद करेगा.
उदाहरण के लिए, मान लीजिए एक दिव्यांग अधिकारी को किसी ऐसे स्थान पर तैनात किया जाता है जहां उन्हें अपनी नौकरी करने के लिए विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती है. इस फैसले के बाद, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दिव्यांग अधिकारी को ऐसी सुविधाएं प्रदान की जाएं. यह न केवल उन्हें अपनी नौकरी करने में मदद करेगा, बल्कि उन्हें एक स्वतंत्र और सम्मानजनक जीवन जीने में भी मदद करेगा.
यह फैसला सभी दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक प्रेरणा है और यह दिखाता है कि न्यायपालिका दिव्यांग अधिकारों के लिए खड़ी है. आशा है कि यह फैसला दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को बढ़ावा देगा और उन्हें समाज में एक समान अवसर प्रदान करेगा.