बिलासपुर में अनुकंपा नियुक्ति के मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला राज्य के विभिन्न विभागों के लिए एक न्याय दृष्टांत के तौर पर काम करेगा।
मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अपने अधिकारों के लिए प्रत्येक नागरिक को सजग रहना आवश्यक है। लापरवाह और आलसी लोगों की कोर्ट भी मदद नहीं करता। इस तल्ख टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
अनुकंपा नियुक्ति को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ताम्रध्वज यादव के पिता की मृत्यु के समय उनके तीन अन्य भाई भी थे। ये भाई मजदूरी करते थे और पिता की मृत्यु के समय व्यस्क थे।
पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए इनमें से किसी एक के द्वारा आवेदन दिया जा सकता था। इसके बावजूद, परिवार के सदस्यों ने कोई ध्यान नहीं दिया। याचिकाकर्ता ने अपने पिता की मृत्यु के लगभग ढाई साल बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। जब विभाग ने आवेदन को खारिज कर दिया, तब वे हाई कोर्ट पहुंचे।
कोर्ट का यह फैसला यह संदेश देता है कि अपने अधिकारों के लिए समय पर कदम उठाना बहुत जरूरी है। देर आने वाले को, दौड़ने वाले को ही नहीं, बल्कि कोर्ट भी नहीं, मदद करता!