छत्तीसगढ़ की धरती पर एक बार फिर हरेली का त्योहार अपनी पूरी भव्यता के साथ दस्तक दे रहा है। इस वर्ष का यह उत्सव विशेष है, क्योंकि मुख्यमंत्री निवास स्वयं एक छोटे से गाँव का रूप धारण कर चुका है। हर तरफ हरेली की रौनक छाई हुई है, मानो प्रकृति ने अपना सबसे सुंदर परिधान पहन लिया हो।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय कल हरेली के पावन अवसर पर परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ पूजा-अर्चना करेंगे। यह त्योहार केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि धरती माँ के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है, जो हमारे जीवन में उनके महत्व को दर्शाता है।

हरेली का यह त्योहार छत्तीसगढ़ी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यहाँ की परंपराएँ समय के साथ बदलती नहीं, बल्कि नए रूप में ढलती हैं। रहचुली झूला, जो कभी ग्रामीण क्षेत्रों का प्रमुख मनोरंजन का साधन हुआ करता था, आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। इस झूले पर बैठकर लोग न केवल आनंद लेते हैं, बल्कि अपने पुरखों की यादों में खो जाते हैं।

इसे भी पढ़ें  रायपुर: रोटरी क्लब ऑफ रायपुर कॉस्मोपॉलिटन ने आयोजित किया "शाइन 2024" मेगा यूथ फेस्टिवल, 2500 से अधिक छात्रों ने दिखाई प्रतिभा!

गेड़ी, जो एक समय में यातायात का प्रमुख साधन थी, आज भी हरेली के उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कीचड़ भरी सड़कों पर चलने वाली यह गेड़ी, आज भी लोगों के उत्साह का प्रतीक है। गेड़ी दौड़ प्रतियोगिताएँ इस त्योहार की एक प्रमुख आकर्षण हैं।

हरेली के दिन बैल और बैलगाड़ियाँ भी सजाई जाती हैं। यह न केवल एक परंपरा है, बल्कि हमारे पशुधन के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। मुख्यमंत्री साय अपने परिवार के साथ इस परंपरा को जीवंत रखते हुए पूजा-अर्चना करेंगे।

इस अवसर पर ग्रामीण खेलों का भी विशेष महत्व है। पिट्ठूल, भौरा जैसे पारंपरिक खेल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। साथ ही, छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे चीला, खुरमी, ठेठरी, और अइरसा लोगों के स्वाद को तृप्त करते हैं।

लोक संस्कृति इस त्योहार का प्राण है। राऊत नाचा और करमा नृत्य जैसे पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। विभिन्न लोकगीतों की प्रस्तुतियाँ वातावरण को संगीतमय बना देती हैं।

इसे भी पढ़ें  रायपुर में 9 सूने मकानों में चोरी करने वाले 3 आरोपी गिरफ्तार, 2 फरार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर, मुख्यमंत्री साय ने भी लोगों से हरेली के दिन एक पेड़ अपनी माँ के नाम लगाने का आग्रह किया है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण का एक कदम है, बल्कि अपनी जननी और जन्मभूमि के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक भी है।

इस प्रकार, हरेली का त्योहार छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा संगम है। यह त्योहार न केवल खुशियाँ लाता है, बल्कि हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है, हमें याद दिलाता है कि हम कहाँ से आए हैं और हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध है।

 

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *