विश्व आदिवासी दिवस पर कलाकार डी.एस. विद्यार्थी की अनूठी पेंटिंग ने जीता दिल
विश्व आदिवासी दिवस पर कलाकार डी.एस. विद्यार्थी की अनूठी पेंटिंग ने जीता दिल

विश्व आदिवासी दिवस पर भिलाई के प्रतिभाशाली चित्रकार डी.एस. विद्यार्थी ने अपनी कला के माध्यम से आदिवासी संस्कृति को एक नया आयाम दिया है। 9 अगस्त को मनाए जाने वाले इस विशेष दिन पर, विद्यार्थी जी ने एक ऐसी नयनाभिराम पेंटिंग का सृजन किया है, जो न केवल आँखों को मोहती है, बल्कि आदिवासी समुदाय के प्रति सम्मान और समझ को भी बढ़ावा देती है।

मॉडर्न आर्ट के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाने जाने वाले विद्यार्थी जी ने इस बार अपने कैनवास पर आदिवासी जीवन की समृद्धि और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को उकेरा है। उनकी यह कृति न केवल कला प्रेमियों को आकर्षित कर रही है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में आदिवासी संस्कृति के प्रति जागरूकता भी फैला रही है।

इस अद्भुत कलाकृति में, विद्यार्थी जी ने आदिवासी समुदाय के प्रकृति प्रेम को बड़ी ही सूक्ष्मता से दर्शाया है। पेंटिंग में दिखाए गए रंगीन परिधानों में सजे आदिवासी लोग, हरे-भरे जंगलों और झरनों के बीच अपने परंपरागत नृत्य में मग्न हैं। यह दृश्य न केवल उनके जीवंत संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के साथ उनके सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का भी प्रमाण है।

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विद्यार्थी जी, जो स्वयं आदिवासी समुदाय से संबंध रखते हैं, ने अपनी इस कृति के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि, “विश्व के आदिवासी समुदाय प्रकृति को देवता मानते हैं। उनका नृत्य और संगीत प्रकृति देव को प्रसन्न करने के लिए होता है। यदि आधुनिक समाज इनके जीवन शैली का अनुसरण करे, तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है।”

इस अनूठी कलाकृति ने कला जगत में भी हलचल मचा दी है। प्रसिद्ध चित्रकार बी.एल. सोनी, रंगकर्मी विजय शर्मा, मूर्तिकार मोहन बराल, और कई अन्य प्रतिष्ठित कलाकारों ने विद्यार्थी जी के इस प्रयास की सराहना की है। ललित कला अकादमी के छत्तीसगढ़ बोर्ड के प्रथम सदस्य डॉ. अंकुश देवांगन ने भी इस कला कृति को आदिवासी संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।

यह पेंटिंग न केवल एक कलाकृति है, बल्कि आदिवासी जीवन शैली के महत्व का एक ज्वलंत उदाहरण भी है। यह हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना न केवल संभव है, बल्कि आवश्यक भी है। विद्यार्थी जी की यह कृति विश्व आदिवासी दिवस के उद्देश्य को साकार करती है, जो 1982 से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए मनाया जाता है।

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इस तरह, डी.एस. विद्यार्थी की यह पेंटिंग न केवल कला का एक उत्कृष्ट नमूना है, बल्कि समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी जड़ों और प्रकृति के साथ जुड़े रहना कितना महत्वपूर्ण है, जो न केवल हमारी संस्कृति को समृद्ध बनाता है, बल्कि एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने में भी मदद करता है।

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