रायपुर: छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीजों से पैसे वसूलने का आरोप लग रहा है, जिससे प्रदेशभर में हंगामा मचा हुआ है। स्वास्थ्य कर्मचारी संगठन ने इस योजना को सरकारी अस्पतालों में बंद करने की मांग की है।
कर्मचारियों का कहना है कि सरकार उन्हें वेतन देती है, ऐसे में इंसेंटिव के नाम पर पैसे का बंदरबांट क्यों? उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में आने वाले पैसे का इस्तेमाल अस्पताल के विकास के लिए होना चाहिए, जिससे बेहतर सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध हो सकें।
फर्जी मरीज भर्ती करने का आरोप
स्वास्थ्य संगठन का आरोप है कि इंसेंटिव के लालच में फर्जी मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। कुछ सेक्टरों को 74 लाख रुपये तक के इंसेंटिव दिए गए हैं, जबकि कंप्यूटर ऑपरेटरों को तीन-तीन लाख रुपये दिए गए हैं।
जांच के आदेश
राजधानी रायपुर के जिला चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मिथलेश चौधरी ने बताया कि मामले की जांच के लिए जिला स्तरीय टीम का गठन किया गया है। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
प्रदेशव्यापी जांच के निर्देश
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कि पूरे प्रदेश में इस मामले की जांच की जाएगी। जो लोग मेहनत कर रहे हैं, उन्हें इंसेंटिव मिलना चाहिए, लेकिन अनियमितता पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इंसेंटिव राशि का वितरण
मंत्री ने बताया कि इंसेंटिव की राशि सिर्फ डॉक्टरों को ही नहीं, बल्कि इसमें शामिल सभी कर्मचारियों को दी जाती है। यह राशि तीन हिस्सों में बांटी जाती है: अस्पताल के विकास, इमरजेंसी खरीद और सरकारी कोष में जमा करने के लिए।
इंसेंटिव राशि का उदाहरण
मंत्री ने बताया कि प्रसव सर्जरी करने वाले डॉक्टरों को 5,000 रुपये और एनेस्थीसिया देने वालों को 3,000 रुपये का इंसेंटिव दिया जाता है। विभिन्न कर्मचारियों के लिए अलग-अलग इंसेंटिव राशि निर्धारित है।