रायपुर के डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय में स्थापित मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के वैज्ञानिकों की टीम ने कोविड-19 महामारी संक्रमण की गंभीरता का अनुमान प्रारंभिक चरण में ही लगाने वाला बायोमार्कर किट विकसित किया है।
शोध के परिणाम साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित
इस शोध के परिणाम हाल ही में विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं। यह प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित किया जाता है, और रिसर्च के क्षेत्र में यह दुनिया का 5वां सबसे अधिक संदर्भित किया जाने वाला रिसर्च जर्नल है।
शोध का उद्देश्य
महामारी की शुरुआत में, जब देश के कई प्रमुख वैज्ञानिक नए कोविड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट किट विकसित करने में जुटे हुए थे, एमआरयू के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जगन्नाथ पाल ने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन के मूलभूत मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित किया, जो भविष्य में किसी भी महामारी की स्थिति से निपटने के लिए भी उपयोगी हो सकता है।
बायोमार्कर किट का महत्व
डॉ. जगन्नाथ पाल के अनुसार, कोरोना महामारी के प्रारंभिक चरण में संसाधन और एंटी-वायरस दवाओं का बहुतायत मात्रा में प्रयोग हुआ, जिससे गंभीर दवा संकट के साथ-साथ रेमडेसिवीर जैसी जीवन रक्षक दवाओं का संकट भी उत्पन्न हुआ। शुरुआती चरण में यह पता लगाना मुश्किल होता था कि किन कोरोना रोगियों को मेडिकल की अग्रिम सुविधा की आवश्यकता है या नहीं? इसलिए पूर्वानुमानित परिणाम के आधार पर रोगियों के संक्रमण की गंभीरता को अलग-अलग श्रेणी में विभाजन करना ज़रूरी था जिससे कि इन संसाधनों का गंभीर कोरोना रोगियों में उपयोग किया जा सके। लेकिन, उस समय कोई भी ऐसा टेस्ट/जांच उपलब्ध नहीं था जिससे कि प्रारंभिक चरण में ही कोरोना रोगियों की गंभीरता का पता चल सके।
तीन साल के अथक परिश्रम से मिली सफलता
डॉ. पाल के नेतृत्व में एमआरयू रिसर्च टीम ने उपलब्ध सीमित संसाधन का उपयोग करके इस दिशा में काम करना शुरू किया और अंततः बायोमार्कर किट विकसित करने में सफलता हासिल कर ली, जिसका उपयोग करके कोरोना के गंभीरता की भविष्यवाणी प्रारंभिक चरण में ही की जा सकती है।
शोध में उपयोग की गई तकनीक
इस शोध कार्य में वैज्ञानिकों ने क्यू पीसीआर (Quantitative PCR) आधारित टेस्ट का उपयोग करके एक सीवरिटी स्कोर विकसित किया जिनकी संवेदनशीलता 91 प्रतिशत और विशेषता 94 प्रतिशत है।
शोध टीम
इस शोध दल में एक अन्य एमआरयू वैज्ञानिक डॉ. योगिता राजपूत, पेपर की पहली लेखिका ने विभिन्न विभागों के अन्य बहु-विषयक योगदानकर्ताओं के साथ समन्वय करते हुए चुनौतीपूर्ण परियोजना को मूर्त रूप में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पेटेंट के लिए आवेदन
डॉ. पाल के आविष्कार के संभावित व्यावसायिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए पं. जे.एन.एम मेडिकल कॉलेज ने भारतीय पेटेंट के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है।
अमेरिका में संभावित व्यावसायिक महत्व
डॉ. पाल के अनुसार, हाल ही में अमेरिका की पेटेंट सर्च एजेंसी ने अमेरिका में आविष्कार के संभावित व्यावसायिक महत्व को दर्शाते हुए उत्साहजनक रिपोर्ट प्रदान की है। इसका मतलब है कि भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाली चिकित्सा प्रौद्योगिकी को विदेशों में निर्यात करने का अवसर हमें मिल सकता है।
एमआरयू का रिसर्च ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को बढ़ावा
एमआरयू का रिसर्च हमारे देश के प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान को भी बरकरार रखेगा।
संसाधन सीमित केंद्रों के लिए प्रेरणा
यह सफलता की कहानी संसाधन सीमित केंद्रों में काम करने वाले कई शोधकर्ताओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण भी है।
पं. जे.एन.एम मेडिकल कॉलेज की उपलब्धि एक उत्साहजनक उदाहरण स्थापित करेगी कि एक राज्य संचालित मेडिकल कॉलेज समय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मेडिकल टेक्नोलॉजी विकसित कर रहा है और इसके व्यावसायीकरण में भी अपना योगदान दे रहा है।