छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में सराईपाली से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह खूबसूरत पहाड़ी शृंखला है जिसे बुढ़ा डोंगर भी कहा जाता है, डोंगर अर्थात् पर्वत होता है। पर्वत का क्षेत्रफल 10 किमी है। इसकी सबसे ऊंची चोटी को क्षेमाखुटी कहते हैं। यह एक छोटी पहाड़ी है जो आसपास के मैदानी इलाके से अलग दिखाई देती है। पहाड़ की ऊंचाई लगभग 100 मीटर है और इसके चारों ओर घने जंगल हैं।
शिशुपाल पर्वत
शिशुपाल पर्वत के पूर्वी भाग में घोड़ाधार जलप्रपात स्थित है, जो कि एक मौसमी जलप्रपात है। यह लगभग 300 मीटर ऊंचा है।
पहाड़ी के चोटी मे महादेव जी का एक मंदिर भी है और यहाँ मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि में भव्य मेला लगता है और पर्वत के नीचे एक महामाया देवी जी का भी मंदिर भी है, जिसके आँगन में सिंदूर पेड़ का वृक्ष है।
घोरघाट जलाशय जो कि शिशुपाल के पास ही है वहां भी मल्दामाल और पतेरापाली गांव के लोगों द्वारा मकर संक्रांति पर्व सालों से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर विशेष पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है।
Shishupal mountain cliff near Saraipalli in Mahasamund district is one of the underrated sites of Chhattisgarh. Locally known as Buda Dongar, this mountain cliff has a seasonal waterfall too, named as Ghodadhar waterfall.
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पौराणिक कथाएँ:
- शिशुपाल का जन्म और वरदान: कहा जाता है कि शिशुपाल जन्म के समय बहुत विकृत रूप में था। उसके तीन आँखें और चार हाथ थे। उसके माता-पिता ने उसे त्यागने का निर्णय लिया, लेकिन तभी एक आकाशवाणी ने कहा कि जिस व्यक्ति की गोद में बच्चा जाते ही सामान्य हो जाएगा, वही उसका वध करेगा। जब कृष्ण ने बच्चे को गोद में लिया, तो वह सामान्य हो गया।
- कृष्ण का वचन: कृष्ण ने शिशुपाल की माता से वचन दिया कि वे उसके 100 अपराध क्षमा करेंगे, और 101वें अपराध पर ही उसका वध करेंगे।
- राजसूय यज्ञ और शिशुपाल का अंत: युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में, शिशुपाल ने कृष्ण का अपमान किया। जब उसके अपराधों की संख्या 100 को पार कर गई, तब कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। कहा जाता है कि शिशुपाल का सिर कटकर इसी पहाड़ी पर गिरा, जिससे इसका नाम शिशुपाल पर्वत पड़ा।
- शिशुपाल की मुक्ति: पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिशुपाल के वध के बाद उसकी आत्मा कृष्ण में विलीन हो गई। यह माना जाता है कि उसे मोक्ष प्राप्त हुआ, क्योंकि उसका अंत भगवान के हाथों हुआ था।
- स्थानीय किंवदंतियाँ: स्थानीय लोगों में एक मान्यता है कि शिशुपाल का आत्मा अभी भी इस पहाड़ी पर भटकती है। कुछ लोग कहते हैं कि पूर्णिमा की रातों में यहाँ अजीब आवाजें सुनाई देती हैं।
- पवित्र जल स्रोत: पहाड़ी पर स्थित कुछ जल स्रोतों के बारे में कहा जाता है कि वे शिशुपाल के रक्त से उत्पन्न हुए हैं। स्थानीय लोग इन स्रोतों के जल को चमत्कारिक मानते हैं और इसका उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में करते हैं।
- वार्षिक उत्सव: प्रतिवर्ष, शिशुपाल के वध की स्मृति में यहाँ एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। इस दौरान नाटक और लोक कलाओं के माध्यम से शिशुपाल और कृष्ण की कथा का मंचन किया जाता है।
- तपस्या स्थल: कुछ लोगों का मानना है कि शिशुपाल ने अपने पूर्व जन्म में इसी पहाड़ी पर कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उसे भगवान के हाथों मृत्यु पाने का वरदान मिला।
ये पौराणिक कथाएँ शिशुपाल पर्वत को एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्रदान करती हैं। हालांकि ये कथाएँ मुख्य रूप से पौराणिक हैं, फिर भी वे इस स्थान के प्रति लोगों की श्रद्धा और आकर्षण का मुख्य कारण हैं।
जैव विविधता: शिशुपाल पर्वत और उसके आसपास का क्षेत्र विविध प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर है। यहाँ साल, सागौन, और बांस के पेड़ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। वन्यजीवों में हिरण, जंगली सूअर, और विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं। यह क्षेत्र पक्षी प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग माना जाता है।
पुरातात्विक खोजें: हाल के वर्षों में, पुरातत्वविदों ने इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण खोजें की हैं। इनमें प्राचीन मिट्टी के बर्तन, धातु की वस्तुएँ, और कुछ मूर्तियाँ शामिल हैं। इन खोजों से इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास पर नया प्रकाश पड़ा है।
स्थानीय त्योहार और उत्सव: प्रतिवर्ष, शिशुपाल पर्वत पर एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में “शिशुपाल मेला” कहा जाता है। यह मेला आमतौर पर चैत्र महीने (मार्च-अप्रैल) में होता है और इसमें हजारों श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं।
पानी के स्रोत: पहाड़ी के पास कई प्राकृतिक झरने और जल स्रोत हैं। इनमें से कुछ को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं और उनका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।
शिलालेख और गुफा चित्र: कुछ गुफाओं में प्राचीन शिलालेख और चित्र पाए गए हैं। ये चित्र प्राचीन समय के जीवन और संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं। हालांकि, इन पर अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।
पर्वतारोहण और ट्रेकिंग: शिशुपाल पर्वत पर्वतारोहण और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए एक आकर्षक स्थल है। पहाड़ी पर चढ़ने के दौरान, आप प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं और चोटी से आसपास के क्षेत्र का पैनोरमिक दृश्य देख सकते हैं।
स्थानीय कला और शिल्प: पहाड़ी के आसपास के गाँवों में स्थानीय कलाकार और शिल्पकार रहते हैं। वे पारंपरिक छत्तीसगढ़ी कला शैलियों में काम करते हैं, जिसमें बांस की कलाकृतियाँ, मिट्टी के बर्तन, और हस्तनिर्मित कपड़े शामिल हैं।
आध्यात्मिक महत्व: कई लोग शिशुपाल पर्वत को एक आध्यात्मिक स्थल मानते हैं। यहाँ कई साधु और योगी ध्यान और तपस्या के लिए आते हैं। पहाड़ी की शांत और प्राकृतिक वातावरण आध्यात्मिक अभ्यास के लिए आदर्श माना जाता है।
विकास योजनाएँ: छत्तीसगढ़ सरकार शिशुपाल पर्वत को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। इसमें बेहतर सड़क संपर्क, आधुनिक सुविधाओं वाले पर्यटक आवास, और एक संग्रहालय का निर्माण शामिल है जो इस क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति को प्रदर्शित करेगा।
इस तरह, शिशुपाल पर्वत न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता, स्थानीय संस्कृति, और आध्यात्मिकता का एक समृद्ध केंद्र भी है। यह छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत और उज्जवल भविष्य का प्रतीक है।
शिशुपाल पर्वत तक कैसे पहुँचें:
- सड़क मार्ग:
- शिशुपाल पर्वत महासमुंद शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
- महासमुंद से एक पक्की सड़क पहाड़ी के आधार तक जाती है।
- आप महासमुंद से टैक्सी या किराये की कार ले सकते हैं।
- स्थानीय बसें भी नियमित रूप से इस मार्ग पर चलती हैं।
- निकटतम रेलवे स्टेशन:
- निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन रायपुर है, जो लगभग 50 किलोमीटर दूर है।
- रायपुर से आप बस या टैक्सी द्वारा महासमुंद पहुँच सकते हैं।
- निकटतम हवाई अड्डा:
- निकटतम हवाई अड्डा स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा, रायपुर में है।
- यहाँ से आप किराये की कार या टैक्सी द्वारा शिशुपाल पर्वत तक पहुँच सकते हैं।
- स्थानीय परिवहन:
- महासमुंद से आप ऑटो-रिक्शा या जीप भी किराए पर ले सकते हैं।
- कुछ स्थानीय टूर ऑपरेटर भी शिशुपाल पर्वत के लिए पैकेज टूर प्रदान करते हैं।
- पैदल यात्रा:
- पहाड़ी के आधार से शिष्य तक पहुँचने के लिए एक ट्रेकिंग मार्ग है।
- यह मार्ग लगभग 1-2 किलोमीटर लंबा है और मध्यम स्तर का है।
- यात्रा का सबसे अच्छा समय:
- अक्टूबर से मार्च के बीच का समय यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
- गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत अधिक हो सकता है।
- सावधानियाँ:
- यात्रा से पहले मौसम की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें।
- पानी और हल्के नाश्ते का प्रबंध साथ रखें।
- उचित जूते और कपड़े पहनें, विशेषकर यदि आप ट्रेकिंग करने का इरादा रखते हैं।
- आवास:
- महासमुंद में कुछ होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
- पहाड़ी के पास भी कुछ बुनियादी आवास सुविधाएँ हैं, लेकिन अग्रिम बुकिंग की सलाह दी जाती है।
याद रखें कि यह एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, इसलिए स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का सम्मान करना महत्वपूर्ण है। यात्रा से पहले नवीनतम जानकारी के लिए स्थानीय पर्यटन कार्यालय से संपर्क करना एक अच्छा विचार हो सकता है।
शिलालेख और गुफा चित्र:
- प्राचीनता:
- यहाँ पाए गए शिलालेख और गुफा चित्र अनुमानतः 5वीं से 8वीं शताब्दी ईस्वी के बीच के हैं।
- कुछ चित्रों का संबंध और भी प्राचीन काल से होने की संभावना है।
- शिलालेखों की भाषा:
- अधिकांश शिलालेख संस्कृत भाषा में हैं।
- कुछ शिलालेखों में प्राचीन ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया गया है।
- शिलालेखों की विषयवस्तु:
- इनमें राजाओं के शासनकाल, युद्धों, और धार्मिक दान का उल्लेख मिलता है।
- कुछ शिलालेख स्थानीय देवी-देवताओं की स्तुति में लिखे गए हैं।
- गुफा चित्रों के विषय:
- शिकार दृश्य
- पशु-पक्षी
- धार्मिक प्रतीक
- नृत्य और उत्सव के दृश्य
- युद्ध और वीरता के चित्रण
- चित्रकला की तकनीक:
- अधिकांश चित्र प्राकृतिक रंगों से बनाए गए हैं।
- लाल, काले और सफेद रंग का प्रयोग अधिक दिखाई देता है।
- कुछ चित्रों में उभरी हुई रेखाओं का प्रयोग किया गया है।
- महत्वपूर्ण खोजें:
- एक गुफा में एक विशाल शिव लिंग की खुदाई की गई है।
- एक अन्य गुफा में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्र मिले हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- कुछ शिलालेख और चित्र समय के साथ क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
- स्थानीय प्रशासन इनके संरक्षण के लिए प्रयासरत है।
- अध्ययन और शोध:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इन शिलालेखों और चित्रों का अध्ययन किया है।
- कुछ विदेशी विद्वान भी यहाँ शोध कार्य कर रहे हैं।
- दर्शकों के लिए सुविधाएँ:
- कुछ प्रमुख गुफाओं तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई हैं।
- महत्वपूर्ण शिलालेखों के पास व्याख्यात्मक बोर्ड लगाए गए हैं।
- रहस्यमय चित्र:
- एक गुफा में कुछ ऐसे चित्र हैं जिनकी व्याख्या अभी तक नहीं हो पाई है।
- इनमें कुछ अजीब आकृतियाँ और प्रतीक शामिल हैं।
- स्थानीय किंवदंतियाँ:
- स्थानीय लोगों का मानना है कि कुछ गुफा चित्र गुप्त खजाने के स्थान का संकेत देते हैं।
- एक अन्य मान्यता है कि इन चित्रों में प्राचीन ऋषियों द्वारा छोड़े गए संदेश छिपे हैं।
शिशुपाल पर्वत के ये शिलालेख और गुफा चित्र न केवल ऐतिहासिक महत्व के हैं, बल्कि वे प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर भी हैं। इनका अध्ययन हमें उस काल के समाज, धर्म और कला के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।