राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी का मंदिर, भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ जन्माष्टमी का त्योहार एक विशेष तरीके से मनाया जाता है, जहाँ भगवान कृष्ण को 21 तोपों की सलामी दी जाती है! यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है और साल भर देश-विदेश से लाखों भक्त यहाँ दर्शन करने आते हैं।
श्रीनाथजी कौन हैं?
श्रीनाथजी वैष्णव संप्रदाय के केंद्रीय देवता हैं। वल्लभाचार्य ने पुष्टीमार्ग वल्लभ संप्रदाय की स्थापना की थी और उनके बेटे विट्ठलनाथजी श्रीनाथजी के बड़े भक्त थे। नाथद्वारा शहर में श्रीनाथ जी की भक्ति का प्रचार-प्रसार करने का श्रेय उन्हें ही जाता है।
श्रीनाथ जी, भगवान श्रीकृष्ण का 7 वर्षीय बाल स्वरूप है, जब उन्होंने भगवान इंद्र के प्रकोप से बृजवासियों को बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था।
तोपों की सलामी की परंपरा:
नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर देश-विदेश से कृष्णभक्तों का सैलाब उमड़ जाता है। जन्माष्टमी के समय रात को ठीक 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। जिन दो तोपों से भगवान को सलामी दी जाती है, उन्हें नर और मादा तोप कहा जाता है। हर साल मंदिर के प्रशिक्षित होमगार्ड इस परंपरा का निर्वाह करते हैं।
श्रीनाथजी मूर्ति की यात्रा:
श्रीनाथजी की मूर्ति पहले आगरा और ग्वालियर में थी। जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया, तो वहां के महंत इस मूर्ति को लेकर पहले वृंदावन, फिर जयपुर और मारवाड़ ले गए। इसके बाद सुरक्षा के दृष्टि से बाड़मेर के तत्कालीन पाटोदी ठाकुर ने इसका बीड़ा उठाया। 6 माह तक श्रीनाथ जी पाटोदी में विराजे रहे। जब इस बात का पता औरंगजेब को चला, तो महंत मूर्ति को लेकर मेवाड़ आ गए। इसके बाद कोठारिया के ठाकुर और महाराणा राजसिंह ने अपनी जान पर खेलकर नाथद्वारा में श्रीनाथ जी को स्थापित करवाया था।
श्रीनाथजी मंदिर की महिमा:
नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर को ‘श्रीनाथ जी की हवेली’ कहा जाता है। यहाँ आने वाले भक्त अपने साथ चावल के दाने लेकर आते हैं। जन्माष्टमी की पूजा के बाद इन चावल के दानों को अपनी तिजोरी में संभाल कर रख देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन चावल के दानों में उन्हें श्रीनाथ जी की छवि दिखाई देती है और घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
यह भी कहा जाता है कि जब नादिर शाह इस मंदिर को लूटने के लिए 1793 में नाथद्वारा पहुंचा, तो एक फकीर ने उसे लूटपाट करने से मना किया। नादिर शाह ने मना करने पर भी मंदिर में प्रवेश किया, लेकिन उसकी आंखों की रोशनी चली गई। मंदिर में बिना लूटपाट किये, जैसे ही वह मंदिर से बाहर निकला, उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई। श्रीनाथजी के मंदिर की महिमा को देखकर उसने लूटपाट का इरादा छोड़ दिया।
श्रीनाथजी का मंदिर, भक्ति और इतिहास का एक अनोखा संगम है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है।