छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। बिलासपुर स्थित सिम्स (स्वामी विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) के कर्मचारियों के लिए न्याय की किरण चमकी है। हाल ही में, सिम्स प्रशासन द्वारा कई वरिष्ठ नर्सों और अन्य कर्मचारियों को एकतरफा रूप से कार्यमुक्त करने का विवादास्पद निर्णय लिया गया था। इस फैसले ने न केवल कर्मचारियों के बीच हड़कंप मचा दिया, बल्कि उनके परिवारों के सामने भी भविष्य की चिंता खड़ी कर दी।
लेकिन अब, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। कोर्ट ने सिम्स प्रशासन के एकतरफा निर्णय पर रोक लगाते हुए कर्मचारियों को राहत प्रदान की है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जब तक इस मामले का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता, तब तक सभी संबंधित कर्मचारी अपने पदों पर कार्यरत रह सकते हैं।
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब सिम्स की चार वरिष्ठ कर्मचारी – गीता हालदार, दमयंती कश्यप, शारदा यादव और वी लक्ष्मी राव ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। ये सभी कर्मचारी वर्ष 2001 से भी पहले से सिम्स में अपनी सेवाएं दे रही थीं। उनका आरोप था कि सिम्स प्रशासन ने उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना या परामर्श के एकतरफा रूप से कार्यमुक्त कर दिया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उनकी नियुक्ति और सेवा के नियमों में कई बार बदलाव किए गए, लेकिन उनकी सहमति कभी नहीं ली गई। 2001 में सिम्स की स्थापना के समय उन्हें गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया। फिर 2006 में जब सरकार ने सिम्स का अधिग्रहण किया, तो उन्हें फिर से संचालक, चिकित्सा शिक्षा के अधीन कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल कार्रवाई की। न्यायाधीशों ने न केवल कर्मचारियों को अपने पदों पर बने रहने की अनुमति दी, बल्कि राज्य सरकार को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करने और प्रशासनिक मनमानी पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस फैसले से न केवल सिम्स के कर्मचारियों को राहत मिली है, बल्कि यह अन्य संस्थानों के लिए भी एक सबक है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि कर्मचारियों के साथ किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह मामला कर्मचारियों और प्रशासन के बीच बेहतर समझ विकसित करने में मददगार साबित होता है।